बिहार में घूमने के लिए कौन-कौन सी जगह हैं
बिहार के शहरों में आपके लिए बहुत कुछ है, लेकिन क्या आपको इसकी जानकारी है? अगर नहीं तो चलिए हम आपको बताते हैं इन पर्यटन स्थलों के बारे मे.
अगर आपका कभी किसी वजह से बिहार जाने का प्लान बने और आपको इनमें से किसी शहर में रूकना पड़े तो इस मौके को हाथ से जाने ना दें और इन जगहों पर जरूर घूमने जाएं। तो चलिए हम आपको बताते हैं बिहार के कुछ ऐसे पर्यटन स्थलों के बारे में जहां आप घूमने जा सकती हैं। लेकिन उससे पहले बिहार के इतिहास के बारे में कुछ बातें जरूर जान लें। बिहार को प्राचीन काल में मगध के नाम से जाना जाता था और इसकी राजधानी पटना को पाटलिपुत्र। यहां का इतिहास उतना ही पुराना है जितना भारत। यहां मौर्य, गुप्त और मुगल शासकों ने राज किया। माना यह जाता है कि बिहार शब्द की उत्पत्ति बौद्ध विहारों के विहार शब्द से हुई, जिसे बाद में बिहार कर दिया गया। यह राज्य नेपाल, पश्चिम बंगाल, यूपी और झारखण्ड से घिरा हुआ है। बिहार भारत के इतिहास में ऐतिहासिक, साहित्यिक और धार्मिक सभी स्तरों पर महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। तो आइए जानते हैं इतनी खुबियों
वाले राज्य में आप क्या-क्या देख सकती हैं।
विक्रमशिला
विक्रमशिला भारत का एक प्रसिद्ध शिक्षा-केन्द्र (विश्वविद्यालय) था। नालन्दा विश्वविद्यालय और विक्रमशिला दोनों पाल राजवंश के राज्यकाल में शिक्षा के लिए जगत्प्रसिद्ध थे। वर्तमान समय में बिहार के भागलपुर जिले का अन्तिचक गाँव वहीं है जहाँ विक्रमशिला थी। इसकी स्थापना ८वीं शताब्दी में पाल राजा धर्मपाल ने की थी।
भागलपुर शहर से करीब पचास किलोमीटर पूर्व अंतीचक गांव स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय का खंडहर पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फेमस है और विदेशों से भी पर्यटक इस विश्वविद्यालय को देखने आते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने 8वीं सदी के अंतिम वर्षों या 9वीं सदी की शुरुआत में की थी। करीब चार सदियों तक वजूद में रहने के बाद 13वीं सदी की शुरुआत में यह नष्ट हो गया। विक्रमशिला के अलावा यहां का प्रमुख पर्यटन स्थल गंगात्मक डॉल्फिन अभयारण्य है जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
भागलपुर जिला का संक्षिप्त इतिहास
भागलपुर जिला बिहार राज्य के पूर्वी भाग में गंगा नदी के दक्षिणी तट पर बसा हुआ है| भागलपुर शहर भागलपुर प्रमंडल एवं जिला मुख्यालय के साथ सदर अनुमंडल भी है| भागलपुर जिला में तीन अनुमंडल नवगछिया, भागलपुर और कहलगांव है| इस जिला के अंतर्गत 16 प्रखंड और 16 अंचल आते है| इस जिले में 1515 गाँव और 4 कसबे है| वर्तमान का भागलपुर जिला मुग़ल काल में बिहार सूबे के दक्षिण पूर्व का हिस्सा था| जब 1765 में बिहार, बंगाल और ओड़िसा की दीवानी ईस्ट इंडिया कंपनी को प्रदान की गयी थी उस समय यह मुनर सरकार के बड़े क्षेत्र का हिस्सा था| वर्तमान का मुंगेर जिला इसी जिले का हिस्सा रहा है जिसे 1832 में अलग किया गया था| पुनः 1855-56 में संथाल परगना को अलग कर एक नया जिला बनाया गया जो वर्तमान में झारखण्ड राज्य का हिस्सा है| 1954 में गंगा के उत्तर में बिहपुर, नवगछिया और गोपालपुर पुलिस स्टेशन जो वर्तमान में प्रखंड भी है को छोड़कर सहरसा जिला का गठन किया गया| वर्ष 1991 में पुनः एक विभाजन कर बांका को जिला का दर्जा दिया गया|
पावापुरी
नालंदा जिले में स्थित पावापुरी बिहार के धार्मिक स्थलो में शामिल है और जैन धर्म वालों के लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है। यहां भगवान महावीर को पांच सौ ईसा पूर्व में दफनाया गया था और इस स्थान को अपापुरी के नाम से भी जाना जाता है। यह शहर पटना से लगभग 83 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पावापुरी का जलमंदिर पर्यटकों के बीच काफी लौकप्रिय है और यहां का मुख्य मंदिर भी है। यहां पर भगवान महावीर का दाह संस्कार हुआ था। ऐसा माना जाता है उनके दाह संस्कार में इतने लोग एकत्रित हुए थे कि राख उठाते-उठाते मिट्टी उठाने लगे, इस से एक छोटे तालाब का निमार्ण हो गया। जिसे बाद में बड़े तालाब का रूप देकर इसके बीच एक भव्य मंदिर बनावाया गया, जो जल मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अलावा श्वेताम्बर जैन मंदिर, समोसरन मंदिर, दिग्म्बर जैन मंदिर और दादा गुरूदेव का मंदिर देखने लायक हैं।
पावापुरी जल मंदिर
पावापुरी में स्थित “जल मंदिर” राजगीर और बोधगया के समीप पावापुरी भारत के बिहार प्रान्त के नालंदा जिले मे स्थित एक शहर है। यह जैन धर्म के मतावलंबियो के लिये एक अत्यंत पवित्र शहर है क्यूंकि माना जाता है कि भगवान महावीर को यहीं मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। यहाँ के जलमंदिर की शोभा देखते ही बनती है।
पावापुरी मंदिर का दूर से दृश्य
नालन्दा जिला का संक्षिप्त इतिहास
नालंदा भारत के बिहार प्रान्त का एक जिला है जिसका मुख्यालय बिहार शरीफ है।। नालंदा अपने प्राचीन इतिहास के लिये विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ विश्व के सबसे पुराने नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी मौज़ूद है, जहाँ सुदूर देशों से छात्र अध्ययन के लिये भारत आते थे। बुद्ध और महावीर कइ बार नालन्दा मे ठहरे थे। माना जाता है कि महावीर ने मोक्ष की प्राप्ति पावापुरी मे की थी, जो नालन्दा मे स्थित है। बुद्ध के प्रमुख छात्रों मे से एक, शारिपुत्र, का जन्म नालन्दा मे हुआ था। नालंदा पूर्व में अस्थामा तक पश्चिम में तेल्हारा तक दछिन में गिरियक तक उतर में हरनौत तक फैला है. विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालय के अवशेषों को अपने आंचल में समेटे नालन्दा बिहार का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहाँ पर्यटक विश्वविद्यालय के अवशेष, संग्रहालय, नव नालंदा महाविहार तथा ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल देख सकते हैं। इसके अलावा इसके आस-पास में भी घूमने के लिए बहुत से पर्यटक स्थल है। राजगीर, पावापुरी, गया तथा बोध-गया यहां के नजदीकी पर्यटन स्थल हैं। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। भगवान बुद्ध ने यहाँ उपदेश दिया था। भगवान महावीर भी यहीं रहे थे। प्रसिद्ध बौद्ध सारिपुत्र का जन्म यहीं पर हुआ था। नालंदा में राजगीर में कई गर्म पानी के झरने है, इसका निर्माण कहा जाता है की राजा बिम्बिसार ने अपने सासन काल में किया था, राजगीर नालंदा का मुख सहारे है, ब्रह्मकुण्ड, सरस्वती कुण्ड और लंगटे कुण्ड यहाँ पर है, कई बिदेसी मन्दिर भी है यहाँ चीन का मन्दिर, जापान का मन्दिर आदि. नालंदा जिले में जामा मस्जिद भी है जॊ के बिहार शरीफ मे पुलपर है। यह बहुत ही पुराना और विशाल मस्जिद है।
राजगीर
बिहार का एक छोटा-सा शहर है राजगीर, जो कि नालंदा जिले में स्थित है।राजगीर बिहार के धार्मिक स्थलों की सूची में शामिल एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। राजगीर शहर का संबंध जैन और बौद्ध धर्म से है। आपको बता दें कि भगवान बुद्ध और भगवान महावीर ने अपने जीवन का कुछ समय इस स्थान पर आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व के उपदेश देते हुए बिताया था। यह शहर अपनी खूबसूरत वादियों, पहाड़ियों, घने हरे-भरे जंगलों, झरने और गुफाओं के लिए फेमस है। यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शांति स्तूप, मखदुम कुंड, बिम्बिसार की जेल, वीरयातन संग्रहालय, साइक्लोपियन दीवार, वेणुवन, ग्रिधाकुटा, सोन भंडार, सप्तपर्णी गुफा शामिल हैं। इसके अलावा यहां मनियार मठ, कुंडलपुर, तपोधर्मा मंदिर, ह्वेन त्सांग मेमोरियल हॉल, सारिपुत्र का स्तूप, अजातशत्रु किला, पांडु पोखर घूमने लायक जगहों में शामिल हैं। वहीं, जरासंध का अखाड़ा, चेरियट ट्रैक्स, हॉट स्प्रिंग्स और घोड़ा कटोरा झील भी दर्शनीय हैं।
मधुबनी
मधुबनी मिथिला संस्कृति का अंग और केंद्र बिंदू है। रामायण में इस शहर का उल्लेख मिलता है। यह शहर अपनी शानदार मधुबनी पेंटिंग के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। आपको बता दें कि सुपौल और सीतामढ़ी मधुबनी के प्रमुख व्यापारिक क्षेत्रों में से एक हैं। पर्यटक भारी संख्या में मधुबनी घूमने आते हैं। यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में सौराठ, जयनगर, कपिलेश्वरनाथ, झंझरपुर, भवानीपुर और फुल्लाहर शामिल हैं।
मधुबनी जिला का संक्षिप्त इतिहास
भारत के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल अंतर्गत एक प्रमुख शहर एवं जिला है। दरभंगा एवं मधुबनी को मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव माना जाता है। मैथिली तथा हिंदी यहाँ की प्रमुख भाषा है। विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार की वजह से मधुबनी को विश्वभर में जाना जाता है। इस जिला का गठन 1972 में दरभंगा जिले के विभाजन के उपरांत हुआ था।मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है।
मधुबनी चित्रकला –
मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा
खूब पसंद किया जा रहा है।
माना जाता है ये चित्र राजा जनक ने राम-सीता के विवाह के दौरान महिला कलाकारों से बनवाए थे। पहले तो सिर्फ ऊंची जाति की महिलाओं (जैसे ब्राह्मणों) को ही इस कला को बनाने की इजाजत थी लेकिन वक्त के साथ ये सीमाएँ भी खत्म हो गईं। आज मिथिलांचल के कई गांवों की महिलाएँ इस कला में दक्ष हैं। अपने असली रूप में तो ये पेंटिंग गांवों की मिट्टी से लीपी गई झोपड़ियों में देखने को मिलती थी, लेकिन इसे अब कपड़े या फिर पेपर के कैनवास पर खूब बनाया जाता है। समय के साथ साथ चित्रकार कि इस विधा में पासवान जाति के समुदाय के लोगों द्वारा राजा शैलेश के जीवन वृतान्त का चित्रण भी किया जाने लगा। इस समुदाय के लोग राजा सैलेश को अपने देवता के रूप में पूजते भी हैं।इस चित्र में खासतौर पर कुल देवता का भी चित्रण होता है। हिन्दू देव-देवताओं की तस्वीर, प्राकृतिक नजारे जैसे- सूर्य व चंद्रमा, धार्मिक पेड़-पौधे जैसे- तुलसी और विवाह के दृश्य देखने को मिलेंगे। मधुबनी पेंटिंग दो तरह की होतीं हैं- भित्ति चित्र और अरिपन या अल्पना।
चटख रंगों का इस्तेमाल खूब किया जाता है। जैसे गहरा लाल रंग, हरा, नीला और काला। कुछ हल्के रंगों से भी चित्र में निखार लाया जाता है, जैसे- पीला, गुलाबी और नींबू रंग। यह जानकर हैरानी होगी की इन रंगों को घरेलू चीजों से ही बनाया जाता है, जैसे- हल्दी, केले के पत्ते, लाल रंग के लिऐ पीपल की छाल प्रयोग किया जाता है। और दूध। भित्ति चित्रों के अलावा अल्पना का भी बिहार में काफी चलन है। इसे बैठक या फिर दरवाजे के बाहर बनाया जाता है। पहले इसे इसलिए बनाया जाता था ताकि खेतों में फसल की पैदावार अच्छी हो लेकिन आजकल इसे घर के शुभ कामों में बनाया जाता है। चित्र बनाने के लिए माचिस की तीली व बाँस की कलम को प्रयोग में लाया जाता है। रंग की पकड़ बनाने के लिए बबूल के वृक्ष की गोंद को मिलाया जाता है।समय के साथ मधुबनी चित्र को बनाने के पीछे के मायने भी बदल चुके हैं, लेकिन ये कला अपने आप में इतना कुछ समेटे हुए हैं कि यह आज भी कला के कद्रदानों की चुनिन्दा पसंद में से है।
चित्रण से पूर्व हस्त नर्मित कागज को तैयार करने के लिऐ कागज पर गाय के गोबर का घोल बनाकर तथा इसमें बबूल का गोंद डाला जाता है। सूती कपड़े से गोबर के घोल को कागज पर लगाया जाता है और धूप में सुखाने के लिए रख दिया जाता है।मधुबनी चित्रकला दीवार, केन्वास एवं हस्त निर्मित कागज पर वर्तमान समय में चित्रकारों द्वारा बनायी जाती हैं।
मधुबनी भित्ति चित्र में मिट्टी (चिकनी) व गाय के गोबर के मिश्रण में बबूल की गोंद मिलाकर दीवारों पर लिपाई की जाती है। गाय के गोबर में एक खास तरह का रसायन पदार्थ होने के कारण दीवार पर विशेष चमक आ जाती है। इसे घर की तीन खास जगहों पर ही बनाने की परंपरा है, जैसे- पूजास्थान, कोहबर कक्ष (विवाहितों के कमरे में) और शादी या किसी खास उत्सव पर घर की बाहरी दीवारों पर। मधुबनी पेंटिंग में जिन देवी-देवताओं का चित्रण किया जाता है, वे हैं- मां दुर्गा, काली, सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गौरी-गणेश और विष्णु के दस अवतार इत्यादि। इन तस्वीरों के अलावा कई प्राकृतिक और रम्य नजारों की भी पेंटिंग बनाई जाती है। पशु-पक्षी, वृक्ष, फूल-पत्ती आदि को स्वस्तिक की निशानी के साथ सजाया-संवारा जाता है।
सीतामढ़ी
सीतामढ़ी को सीता के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि सीतामढ़ी के पूनौरा नामक स्थान पर जब राजा जनक ने खेत में हल जोते तो उस समय धरती से सीता का जन्म हुआ था और सीता के जन्म के कारण ही इस शहर का नाम सीतामढ़ी पड़ा। सीतामढ़ी के प्रमुख पर्यटन स्थल जानकी स्थान मंदिर, हलेश्वर स्थान, उर्बीजा कुंड, बगही मठ, पंथ पाकड़ इत्यादि हैं।
जानकी मंदिर
सीतामढ़ी जिला का संक्षिप्त इतिहास
सीतामढ़ी का जिला 11 दिसंबर 1 9 72 को मुजफ्फरपुर जिले से बना था। यह बिहार के उत्तरी भाग में स्थित है। इसका मुख्यालय डुमरा में स्थित है, सीतामढ़ी से पांच किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। जनवरी 1 9 34 में सीतामढ़ी के सबसे बुरे भूकंप में से एक में तबाह हो जाने के बाद जिला मुख्यालय को यहां स्थानांतरित कर दिया गया था।
हिंदू पौराणिक कथाओं में सीतामढ़ी एक पवित्र स्थान है। यह इतिहास ट्रेटा युग में वापस चला जाता है भगवान रामा की पत्नी सीता, एक मादक पेड़ से बाहर जीवन में उठे, जब राजा जनक बारिश के लिए भगवान इंद्र को प्रभावित करने के लिए सीतामढ़ी के पास कहीं खेत लगा रहा था। ऐसा कहा जाता है कि राजा जनक ने उस स्थान पर एक टैंक की खुदाई की जहां सीता उभरा थी और उसके विवाह के बाद साइट को चिह्नित करने के लिए राम, सीता और लक्ष्मण के पत्थर के आंकड़े स्थापित किए गए थे। यह टैंक जानकी-कुंड के रूप में जाना जाता है और जनाकी मंदिर के दक्षिण में है।बेशक, 500 साल पहले तक जंगल में जमीन बची हुई थी, जब एक हिंदू साधु नामित, बीरबल दास नामक दिव्य प्रेरणा से साइट को पता चला जहां सीता का जन्म हुआ। वह अयोध्या से उतरकर जंगल को मंजूरी दे दी। उन्होंने राजा जनक द्वारा स्थापित छवियों को पाया, वहां पर मंदिर बना दिया और जनकी या सीता की पूजा शुरू की। जानकी मंदिर जाहिरा तौर पर आधुनिक है और लगभग 100 वर्ष पुराना है। शहर में हालांकि पुरातात्विक रुचि का कोई अवशेष नहीं है
हाजीपुर
हाजीपुर भारत के ऐसे स्थानों में शामिल है जो अतीत और वर्तमान को सालों से अपने में समेटे हुए है। यह शहर भगवान बुद्ध, इस्लाम और ब्रिटिश काल से जुड़े रोचक तथ्यों के लिए फेमस है। हाजीपुर में हिन्दू और जैन धर्म के कई मंदिर स्थित हैं जो पर्यटकों की आस्था का मुख्य केंद्र हैं, जिसमें बटेश्वरनाथ मंदिर, पातालेश्वर मंदिर और रामचौरा मंदिर प्रमुख हैं। इसके अलावा यहां घूमने के लिए महात्मा गांधी सेतु, कौन हारा घाट भी हैं।
मुजफ्फरपुर
बिहार के प्रमुख आकर्षण में शामिल मुजफ्फरपुर बागमती और लखनदेई नदियों के निकट बसा है। लीची के लिए प्रसिद्ध मुजफ्फरपुर पटना से लगभग 71 किलोमीटर दूर है। यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में बाबा गरीब नाथ मंदिर, जुब्बा सहानी पार्क, रामचंद्र साही संग्रहालय, खुदीराम बोस मैमोरियल, चतुर्भुज स्थान मंदिर, श्रीराम मंदिर, रामन देवी मंदिर शामिल हैं।
- मुजफ्फरपुर जिला का संक्षिप्त इतिहास
मुजफ्फरपुर जिला, ‘ लीची की भूमि’ 1875 में प्रशासनिक सुविधा के लिए तिहुत के पहले जिले को विभाजित करके बनाया गया था। वर्तमान जिला मुजफ्फरपुर 18 वीं शताब्दी में अपने अस्तित्व में आया और ब्रिटिश राजवंश के तहत एक अमील (राजस्व अधिकारी) मुजफ्फर खान के नाम पर रखा गया। पूरब में चंपारण और सीतामढ़ी जिलों के उत्तर, दक्षिण वैशाली और सारण जिलों पर, पूर्व दरभंगा और समस्तीपुर जिलों पर और पश्चिम सारण से गोपालगंज जिलों से घिरा है। मुजफ्फरपुर अब इसके स्वादिष्ट शाही लीची और चाईना लीची के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों को जीत लिया है।यह वास्तव में इस क्षेत्र के इतिहास को अपने शुरुआती उत्पत्ति के बारे में जानना असंभव है, लेकिन हम प्राचीन भारतीय महाकाव्य रामायण के माध्यम से एक मजबूत विरासत की धारा को बहुत लंबा रास्ता खोज सकते हैं, जो अब भी भारतीय सभ्यता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किंवदंती के साथ शुरू करने के लिए, राजर्षि जनक, विदेह पर शासन कर रहे थे, इस पूरे क्षेत्र का पौराणिक नाम पूर्वी नेपाल और उत्तरी बिहार भी शामिल था। इस क्षेत्र में एक जगह सीतामढ़ी, पवित्र हिंदू विश्वास का महत्व रखती है, जहां सीता (अन्य नाम वैदेही: विदेह के राजकुमारी ) एक मिट्टी के बर्तन से बाहर जीवन में उठे थे, जबकि राजर्षि जनक ने भूमि में हल चलाई थी।
जिले का दर्ज इतिहास वृज्ज्न गणराज्य के उदय के समय में है। राजनीतिक सत्ता का केंद्र भी मिथिला से वैशाली तक स्थानांतरित हो गया। वृज्ज्न गणराज्य आठ समूहों का एक सम्मिलन था, जिसमें लिच्छवी सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली थे। यहां तक कि मगध के शक्तिशाली साम्राज्य ने 51 9 ई०पू० में अपने पड़ोसी लिच्छवी से वैवाहिक संबंधों को समाप्त करना था। लिच्छवी के पड़ोसी सम्पदा के साथ अजातशत्रु ने वैशाली पर आक्रमण किया और तिरहुत पर अपना प्रभाव बढ़ाया। यह वही समय था कि पाटलीपुत्र (आधुनिक पटना) की स्थापना अजातशत्रु ने पवित्र नदी गंगा के किनारे गांव पाटली में की थी, जिसने नदी के दूसरी तरफ लिच्छवीयों पर सतर्क रहने के लिए एक अजेय गढ़ का निर्माण किया था। अंबाराती, मुजफ्फरपुर से 40 किलोमीटर दूर वैशाली के प्रसिद्ध शाही नर्तक अमरापाली का गांव है।वैशाली, धार्मिक पुनर्जागरण का केंद्र, बसु कंड, महावीर का जन्मस्थान, 24 वें जैन तीर्थंकर और भगवान बुद्ध के एक समकालीन, अंतरराष्ट्रीय बोर्डर से दर्शकों को आकर्षित करना जारी रखते।
ह्यूएन त्सांग की यात्रा से पाल राजवंश के उदय तक, मुजफ्फरपुर उत्तरी भारत के एक शक्तिशाली महाराजा हर्षवर्धन के नियंत्रण में था। 647 ए डी के बाद जिला स्थानीय प्रमुखों को पारित कर दिया। 8 वीं शताब्दी के ए.ए. में, पाला राजाओं ने तिहुत पर 101 9 ए.यू. तक केन्द्रीय भारत के चडी राजाओं तक अपना कब्ज़ा करना जारी रखा और सेना वंस के शासकों द्वारा 11 वीं सदी के नजदीक तक जगह ले ली।1211 और 1226 के बीच, बंगाल के शासक घैसुद्दीन इवाज, तिहुत का पहला मुस्लिम आक्रमणकारी था। हालांकि, वह राज्य को जीतने में सफल नहीं हो पाए लेकिन श्रद्धांजलि अर्पित कीं।सन 1323 में घायसुद्दीन तुगलक ने जिले के ऊपर अपना नियंत्रण स्थापित किया।
मुजफ्फरपुर का इतिहास सिमरॉव वंश (चंपारण के पूर्वोत्तर भाग में) और इसके संस्थापक नुयुपा देव के संदर्भ के बिना अधूरे रहेगा, जिन्होंने पूरे मिथिला और नेपाल पर अपनी शक्ति बढ़ा दी थी। राजवंश के अंतिम राजा हरसिंह देव के शासनकाल के दौरान, तुगलक शाह ने 1323 में तिरहुत पर आक्रमण किया और क्षेत्र पर नियंत्रण प्राप्त किया। तुगलक शाह ने तीरहुत के प्रबंधन को कामेश्वर ठाकुर को सौंप दिया। इस प्रकार, तिरहुत की संप्रभु शक्ति हिंदू प्रमुखों से मुसलमानों तक जाती रही, परन्तु हिंदू प्रमुख निरंतर पूर्ण स्वायत्तता का आनंद उठाते रहे।चौदहवीं शताब्दी के अंत में उत्तरी हिंदुओं सहित पूरे उत्तर बिहार में तहहुत जौनपुर के राजाओं के पास चले गए और लगभग एक सदी तक उनके नियंत्रण में बने रहे, जब तक दिल्ली के सिकंदर लोदी ने जौनपुर के राजा को हरा दिया। इस बीच, बंगाल के नवाब हुसैन शाह इतना शक्तिशाली हो गए थे कि उन्होंने तिरहूत समेत बड़े इलाकों पर अपना नियंत्रण का प्रयास किया। दिल्ली के सम्राट 14 99 में हुसैन शाह के खिलाफ थे और राजा को हराने के बाद तिरहुत पर नियंत्रण मिला। बंगाल के नवाबों की शक्ति कम हो गई और महुद शाह की गिरावट और पतन के साथतिरहुत सहित उत्तर बिहार शक्तिशाली मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। यद्यपि मुजफ्फरपुर पूरे उत्तर बिहार के साथ कब्जा कर लिया गया था, लेकिन बंगाल के नवाब, दाऊद खान के दिनों तक, इस क्षेत्र पर छोटे-छोटे प्रमुख सरदारों ने प्रभावी नियंत्रण जारी रखा था। दाद खान का पटना और हाजीपुर में गढ़ था और उसके बाद मुगल वंश के तहत बिहार का एक अलग सुबादा गठित हुआ और तिरहुत ने इसका एक हिस्सा बना लिया।
1764 में बक्सर की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत ने उन्हें पूरे बिहार पर नियंत्रण दिया और वे पूरे जिले को जीतने में सफल हुए। 1857 में दिल्ली में विद्रोहियों की सफलता ने इस जिले के अंग्रेजी निवासियों को गंभीर चिंता का सामना करना पड़ा और क्रांतिशील उत्साह पूरे जिले में व्याप्त हो गया। मुजफ्फरपुर ने अपनी भूमिका निभाई और 1 9 08 के प्रसिद्ध बम मामले की स्थल थी। युवा बंगाली क्रांतिकारी, खुदी राम बोस, केवल 18 साल के लड़के को प्रिंगल कैनेडी की गाड़ी में बम फेंकने के लिए फांसी पर लटका दिया गया था जो वास्तव में किंग्सफोर्ड के लिए गलत था, मुजफ्फरपुर जिला न्यायाधीश स्वतंत्रता के बाद, इस युवा क्रांतिकारी देशभक्त के लिए एक स्मारक मुज़फ्फरपुर में बनाया गया था, जो अब भी खड़ा है। प्रथम विश्व युद्ध के बाद देश में राजनीतिक जागृति ने मुजफ्फरपुर जिले में राष्ट्रवादी आंदोलन को भी प्रेरित किया। 1920 दिसंबर में महात्मा गांधी की यात्रा मुज़फ्फरपुर जिले में और फिर 1927 में फिर से लोगों की गुप्त भावनाओं को उठाने में जबरदस्त राजनीतिक प्रभाव पड़ा और जिला स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में एक प्रमुख भूमिका निभा रही थी ।मुजफ्फरपुर ने उत्तर-पूर्वी भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय सभ्यता में मुजफ्फरपुर की विशिष्टता दो सबसे जीवंत आध्यात्मिक प्रभावों के बीच सीमा रेखा पर अपनी स्थिति से उत्पन्न होती है और सबसे महत्वपूर्ण रूप से आज तक, यह हिंदू और इस्लामी संस्कृति और विचारों का एक बैठक स्थल है। पारस्परिक आविष्कार का प्रतिनिधित्व करने वाले संशोधित संस्थानों के सभी प्रकार, बोर्डर लाइन के साथ बढ़ते हैं। निस्संदेह उनकी सीमाओं के भीतर यह अत्यधिक विविधतापूर्ण तत्व रहा है जो कि मुजफ्फरपुर को बहुत प्रतिभाशाली लोगों का जन्म स्थान बनाते हैं।
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